Friday, 19 May 2017

Riaz Khairabadi
وہ کون ہے دنیا میں جسے غم نہیں ہوتا
کس گھر میں خوشی ہوتی ہے ماتم نہیں ہوتا

वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
किस घर में ख़ुशी होती है मातम नहीं होता

तुम जा के चमन में गुल ओ बुलबुल को तो देखो
क्या लुत्फ़ तह-ए-चादर-ए-शबनम नहीं होता

क्या सुर्मा भरी आँखों से आँसू नहीं गिरते
क्या मेहंदी लगे हाथों से मातम नहीं होता

कुछ और ही होती हैं बिगड़ने की अदाएँ
बनने में सँवरने में ये आलम नहीं होता

मिटते हुए देखी है अजब हुस्न की तस्वीर
अब कोई मरे मुझ को ज़रा ग़म नहीं होता

कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
मुझ को तो किसी बात का अब ग़म नहीं होता
تم جا کے چمن میں گل و بلبل کو تو دیکھو
کیا لطف تہ چادر شبنم نہیں ہوتا
کیا سرمہ بھری آنکھوں سے آنسو نہیں گرتے
کیا مہندی لگے ہاتھوں سے ماتم نہیں ہوتا
کچھ اور ہی ہوتی ہیں بگڑنے کی ادائیں
بننے میں سنورنے میں یہ عالم نہیں ہوتا
مٹتے ہوئے دیکھی ہے عجب حسن کی تصویر
اب کوئی مرے مجھ کو ذرا غم نہیں ہوتا
کچھ بھی ہو ریاضؔ آنکھ میں آنسو نہیں آتے
مجھ کو تو کسی بات کا اب غم نہیں ہوتا

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