مرے دل تو سمجھتا کیوں نہیں ہے
جو تیرا تھا وہ تیرا کیوں نہیں ہے
یہ شب کیوں اتنی لمبی ہو گئی ہے
کوئی سورج نکلتا کیوں نہیں ہے
میں تجھ سے دور ہوتا جا رہا ہوں
تجھے اب کوئی شکوہ کیوں نہیں ہے
مجھے خود بھی تعجب ہو رہا ہے
مجھے تیری تمنا کیوں نہیں ہے
شجر کی ڈالیاں رونے لگی ہیں
یہاں کوئی پرندہ کیوں نہیں ہے
بتاؤ! اس جہاں میں خوب صورت
کوئی گر ہے، تو تجھ سا کیوں نہیں ہے
سکوں ملتا ہے گاؤں میں اگر تو
وہاں کوئی ٹھہرتا کیوں نہیں ہے
یہ کمرا تو بہت آرام دہ ہے
مگر کوئی دریچہ کیوں نہیں ہے
میری بستی سے جانے والا رستہ
تری جانب نکلتا کیوں نہیں ہے
سنا ہے چاند بوڑھا ہو گیا ہے
تو پھر عادت بدلتا کیوں نہیں ہے
مجھے جانے کی اب جلدی ہے چشتی
کوئی دامن پکڑتا کیوں نہیں ہے
मेरे दिल तू समझता क्यों नहीं है
जो तेरा था वो तेरा क्यों नहीं है
यह शब क्यूँ इतनी लंबी हो गई है
कोई सूरज निकलता क्यूँ नहीं है
मैं तुमसे दूर होता जा रहा हूं
तुझे अब कोई शिकवा क्यों नहीं है
मुझे खुद भी ताज्जुब हो रहा है
मुझे तेरी तमन्ना क्यूँ नहीं है
शजर की डालियाँ रोने लगी हैं
यहाँ कोई परिन्दा क्यों नहीं है
बताओ! इस जहां में खूबसूरत
कोई गर है, तो तुझ सा क्यों नहीं है
सकूं मिलता है गाँव में अगर तो
वहाँ कोई ठहरता क्यों नहीं है
यह कमरा तो बहुत आरामदेह है
मगर कोई दरीचा क्यूँ नहीं है
मेरी बस्ती से जाने वाला रस्ता
तेरी जानिब निकलता क्यूँ नहीं है
सुना है चाँद बूढ़ा हो गया है
तो फिर आदत बदलता क्यूँ नहीं है
मुझे जाने की अब जल्दी है चिश्ती
कोई दामन पकड़ता क्यूँ नहीं है
جو تیرا تھا وہ تیرا کیوں نہیں ہے
یہ شب کیوں اتنی لمبی ہو گئی ہے
کوئی سورج نکلتا کیوں نہیں ہے
میں تجھ سے دور ہوتا جا رہا ہوں
تجھے اب کوئی شکوہ کیوں نہیں ہے
مجھے خود بھی تعجب ہو رہا ہے
مجھے تیری تمنا کیوں نہیں ہے
شجر کی ڈالیاں رونے لگی ہیں
یہاں کوئی پرندہ کیوں نہیں ہے
بتاؤ! اس جہاں میں خوب صورت
کوئی گر ہے، تو تجھ سا کیوں نہیں ہے
سکوں ملتا ہے گاؤں میں اگر تو
وہاں کوئی ٹھہرتا کیوں نہیں ہے
یہ کمرا تو بہت آرام دہ ہے
مگر کوئی دریچہ کیوں نہیں ہے
میری بستی سے جانے والا رستہ
تری جانب نکلتا کیوں نہیں ہے
سنا ہے چاند بوڑھا ہو گیا ہے
تو پھر عادت بدلتا کیوں نہیں ہے
مجھے جانے کی اب جلدی ہے چشتی
کوئی دامن پکڑتا کیوں نہیں ہے
मेरे दिल तू समझता क्यों नहीं है
जो तेरा था वो तेरा क्यों नहीं है
यह शब क्यूँ इतनी लंबी हो गई है
कोई सूरज निकलता क्यूँ नहीं है
मैं तुमसे दूर होता जा रहा हूं
तुझे अब कोई शिकवा क्यों नहीं है
मुझे खुद भी ताज्जुब हो रहा है
मुझे तेरी तमन्ना क्यूँ नहीं है
शजर की डालियाँ रोने लगी हैं
यहाँ कोई परिन्दा क्यों नहीं है
बताओ! इस जहां में खूबसूरत
कोई गर है, तो तुझ सा क्यों नहीं है
सकूं मिलता है गाँव में अगर तो
वहाँ कोई ठहरता क्यों नहीं है
यह कमरा तो बहुत आरामदेह है
मगर कोई दरीचा क्यूँ नहीं है
मेरी बस्ती से जाने वाला रस्ता
तेरी जानिब निकलता क्यूँ नहीं है
सुना है चाँद बूढ़ा हो गया है
तो फिर आदत बदलता क्यूँ नहीं है
मुझे जाने की अब जल्दी है चिश्ती
कोई दामन पकड़ता क्यूँ नहीं है
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