Monday, 16 March 2020

مرے دل تو سمجھتا کیوں نہیں ہے
جو تیرا تھا وہ تیرا کیوں نہیں ہے

یہ شب کیوں اتنی لمبی ہو گئی ہے
کوئی سورج نکلتا کیوں نہیں ہے

میں تجھ سے دور ہوتا جا رہا ہوں
تجھے اب کوئی شکوہ کیوں نہیں ہے

مجھے خود بھی تعجب ہو رہا ہے
مجھے تیری تمنا کیوں نہیں ہے

شجر کی ڈالیاں رونے لگی ہیں
یہاں کوئی پرندہ کیوں نہیں ہے

بتاؤ! اس جہاں میں خوب صورت
کوئی گر ہے، تو تجھ سا کیوں نہیں ہے

سکوں ملتا ہے گاؤں میں اگر تو
وہاں کوئی ٹھہرتا کیوں نہیں ہے

یہ کمرا تو بہت آرام دہ ہے
مگر کوئی دریچہ کیوں نہیں ہے

میری بستی سے جانے والا رستہ
تری جانب نکلتا کیوں نہیں ہے

سنا ہے چاند بوڑھا ہو گیا ہے
تو پھر عادت بدلتا کیوں نہیں ہے

مجھے جانے کی اب جلدی ہے چشتی
کوئی دامن پکڑتا کیوں نہیں ہے



मेरे दिल तू समझता क्यों नहीं है
जो तेरा था वो तेरा क्यों नहीं है

यह शब क्यूँ इतनी लंबी हो गई है
कोई सूरज निकलता क्यूँ नहीं है

मैं तुमसे दूर होता जा रहा हूं
तुझे अब कोई शिकवा क्यों नहीं है

मुझे खुद भी ताज्जुब हो रहा है
मुझे तेरी तमन्ना क्यूँ नहीं है


शजर की डालियाँ रोने लगी हैं
यहाँ कोई परिन्दा क्यों नहीं है

बताओ! इस जहां में खूबसूरत
कोई गर है, तो तुझ सा क्यों नहीं है

सकूं मिलता है गाँव में अगर तो
वहाँ कोई ठहरता क्यों नहीं है

यह कमरा तो बहुत आरामदेह है
मगर कोई दरीचा क्यूँ नहीं है

मेरी बस्ती से जाने वाला रस्ता
तेरी जानिब निकलता क्यूँ नहीं है

सुना है चाँद बूढ़ा हो गया है
तो फिर आदत बदलता क्यूँ नहीं है

मुझे जाने की अब जल्दी है चिश्ती
कोई दामन पकड़ता क्यूँ नहीं है

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