Monday, 16 March 2020

चांद निकला है घटाओं से उसी शान के साथ
है अंधेरों का ही रिश्ता मगर इंसान के साथ
आज फिर पलकों की दहलीज़ पे ज़ख्मी सपने
वक्त के सफ़्हे पे उभरे नये उनवान के साथ
रक्स करती है हवा रात के सन्नाटे में
कोई देता है सदा रात के सन्नाटे में
मेरे मालिक मेरी जन्नत मुझे वापस कर दे।
वह हसीं भोली सी सूरत मुझे वापस कर दे।

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