🌹🌹🌹 غزل 🌹🌹🌹
ادھورا چاند لب بام مسکرا رہا تھا
میں اپنے کمرے میں تصویر اک بنا رہا تھا
میں کھو گیا کسی بے نام سی اداسی میں
وہ شخص ہنستے ہوئے مجھ سے دور جارہا تھا
دکھوں کی دھوپ نہ آ پائے میرے آنگن میں
میں اپنے خواب میں اک ایسا گھر بنا رہا تھا
یہ سانحہ بھی مجھ ہی پر گزر گیا اس روز
نگاہ بھیگی ہوئ تھی میں مسکرا رہا تھا
ہوائیں آئ تھیں پیغام دوستی لے کر
میں رات جس گھڑی گھر کے دئے جلا رہا تھا
پتنگ کٹ کے کہیں دور جا گری چشتی
میں اپنی چھت پہ کھڑا ڈوریاں ہلا رہا تھا
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
❤️❤️❤️ ग़ज़ल ♥️♥️♥️
अधूरा चाँद लबे बाम मुस्कुरा रहा था
मैं अपने कमरे में तस्वीर एक बना रहा था
मैं खो गया किसी बेनाम सी उदासी में
वह शख्स हंसते हुए मुझसे दूर जा रहा था
दुखों की धूप न आ पाए मेरे आँगन में
मैं अपने ख़्वाब में एक ऐसा घर बना रहा था
यह सानेहा भी मुझ ही पर गुज़र गया उस रोज़
निगाह भीगी हुई थी मैं मुस्कुरा रहा था
हवाएँ आई थीं पैगाम ए दोस्ती ले कर
मैं रात जिस घड़ी घर के दीये जला रहा था
पतंग कट के कहीं दूर जा गिरी चिश्ती
मैं अपनी छत पर खड़ा डोरियाँ हिला रहा था
🌹🌹🌹एम आर चिश्ती🌹🌹🌹
ادھورا چاند لب بام مسکرا رہا تھا
میں اپنے کمرے میں تصویر اک بنا رہا تھا
میں کھو گیا کسی بے نام سی اداسی میں
وہ شخص ہنستے ہوئے مجھ سے دور جارہا تھا
دکھوں کی دھوپ نہ آ پائے میرے آنگن میں
میں اپنے خواب میں اک ایسا گھر بنا رہا تھا
یہ سانحہ بھی مجھ ہی پر گزر گیا اس روز
نگاہ بھیگی ہوئ تھی میں مسکرا رہا تھا
ہوائیں آئ تھیں پیغام دوستی لے کر
میں رات جس گھڑی گھر کے دئے جلا رہا تھا
پتنگ کٹ کے کہیں دور جا گری چشتی
میں اپنی چھت پہ کھڑا ڈوریاں ہلا رہا تھا
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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अधूरा चाँद लबे बाम मुस्कुरा रहा था
मैं अपने कमरे में तस्वीर एक बना रहा था
मैं खो गया किसी बेनाम सी उदासी में
वह शख्स हंसते हुए मुझसे दूर जा रहा था
दुखों की धूप न आ पाए मेरे आँगन में
मैं अपने ख़्वाब में एक ऐसा घर बना रहा था
यह सानेहा भी मुझ ही पर गुज़र गया उस रोज़
निगाह भीगी हुई थी मैं मुस्कुरा रहा था
हवाएँ आई थीं पैगाम ए दोस्ती ले कर
मैं रात जिस घड़ी घर के दीये जला रहा था
पतंग कट के कहीं दूर जा गिरी चिश्ती
मैं अपनी छत पर खड़ा डोरियाँ हिला रहा था
🌹🌹🌹एम आर चिश्ती🌹🌹🌹
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