* वह शाम आँखों में बस चुकी है! *
.
मैं तुमसे जब दूर हो रहा था...
सितारे बामे फलक से मुंह मेरा तक रहे थे....
हवाएं रह रहके चल रही थीं
वह फसल सरसों की जो अभी तक पकी नहीं थी ...
वह मेरे कदमों से बेसबब ही उलझ रही थी
मसाफ़्तों की थकान ओढ़े ....
परिन्दे अपने घरों की जानिब रवां दवां थे ...,
तुम्हारे घर की तरफ जो पगडंडी जा रही थी ...
उसी से कुछ दूर दाएँ जानिब
जो पेड़ पीपल का था ........
वह पेड़ बिल्कुल खमोश तंहा खड़ा हुआ था ........,
वह शाम जब सारे वादे, कसमें
भुलाके हम दूर हो रहे थे .....
वह शाम आँखों में बस चुकी है है ....... !!
वह शाम, पीपल के एक तरफ से
जो चांद चेहरा दिखा रहा था ......
वह चाँद भी कितना गमजदा था ..…?
वह चाँद था राजदारे उलफत
वह जानता था ..............
कि प्यार की राह के मुसाफिर ....
भटकते रहते हैं ख्वाब की अजनबी फ़जा में .,
गवाह है आलमे मुहब्बत ...
कि उनको मंजिल मिली नहीं है....
दिलों में उनके ...
कली खुशी की खिली नहीं है ....,
वह शाम आंखों में बस चुकी है .... !!
तुम्हारी आंखों में हसरतों के चिराग सारे......
अब एक इक करके बुझ रहे थे ...,
वह वक्त आया
जब दूर तुम मुझसे जा चुके थे ...,
मैं अपने सपनों को दफन करने में
आह! कुछ ऐसे खो गया था ...
मुझे पता ही नहीं चला कुछ ....
कि रात कब आई, कब गयी, कब फलक से सूरज ने मुंह निकाला,
पता चला तब ......
जब जिन्दगी इस जहाँ में फिर से घसीटकर मुझको ला चुकी थी ...,
सफेदी बालों में आ चुकी थी ...
📚📚एम आर चिश्ती 📚📚
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मैं तुमसे जब दूर हो रहा था...
सितारे बामे फलक से मुंह मेरा तक रहे थे....
हवाएं रह रहके चल रही थीं
वह फसल सरसों की जो अभी तक पकी नहीं थी ...
वह मेरे कदमों से बेसबब ही उलझ रही थी
मसाफ़्तों की थकान ओढ़े ....
परिन्दे अपने घरों की जानिब रवां दवां थे ...,
तुम्हारे घर की तरफ जो पगडंडी जा रही थी ...
उसी से कुछ दूर दाएँ जानिब
जो पेड़ पीपल का था ........
वह पेड़ बिल्कुल खमोश तंहा खड़ा हुआ था ........,
वह शाम जब सारे वादे, कसमें
भुलाके हम दूर हो रहे थे .....
वह शाम आँखों में बस चुकी है है ....... !!
वह शाम, पीपल के एक तरफ से
जो चांद चेहरा दिखा रहा था ......
वह चाँद भी कितना गमजदा था ..…?
वह चाँद था राजदारे उलफत
वह जानता था ..............
कि प्यार की राह के मुसाफिर ....
भटकते रहते हैं ख्वाब की अजनबी फ़जा में .,
गवाह है आलमे मुहब्बत ...
कि उनको मंजिल मिली नहीं है....
दिलों में उनके ...
कली खुशी की खिली नहीं है ....,
वह शाम आंखों में बस चुकी है .... !!
तुम्हारी आंखों में हसरतों के चिराग सारे......
अब एक इक करके बुझ रहे थे ...,
वह वक्त आया
जब दूर तुम मुझसे जा चुके थे ...,
मैं अपने सपनों को दफन करने में
आह! कुछ ऐसे खो गया था ...
मुझे पता ही नहीं चला कुछ ....
कि रात कब आई, कब गयी, कब फलक से सूरज ने मुंह निकाला,
पता चला तब ......
जब जिन्दगी इस जहाँ में फिर से घसीटकर मुझको ला चुकी थी ...,
सफेदी बालों में आ चुकी थी ...
📚📚एम आर चिश्ती 📚📚
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